देहरादून। उत्तराखंड की पहाड़ी सड़कों पर हर साल आपदा भारी पड़ रही है। बारिश और भूस्खलन से राज्य की एक-तिहाई से ज्यादा सड़कें प्रभावित हो जाती हैं, जिससे लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) को हर साल 300 से 400 करोड़ रुपये तक की क्षति का सामना करना पड़ता है। इस बार मानसून में ही 300 करोड़ से अधिक का नुकसान दर्ज किया गया है और 2500 से ज्यादा सड़कें जख्मी हो चुकी हैं। विभाग नए टेंडर जारी कर मरम्मत का काम शुरू करने की तैयारी में जुटा है।चिंता की बात यह है कि जिन सड़कों का पुनर्निर्माण पिछले वर्ष ही कराया गया था, वे भी इस बरसात में फिर से ध्वस्त हो गईं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024 में भी सड़कों को 300 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ था, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 451 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। लगातार बढ़ती क्षति ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर सड़कों को आपदा-रोधी बनाने के लिए विभाग के पास कौन-सा ठोस मॉडल है।प्लास्टिक की सड़कों पर चर्चा, अमल अब भी अधूराविशेषज्ञों का मानना है कि पहाड़ों में प्लास्टिक कचरे से बनी सड़कें बेहद कारगर हो सकती हैं। इस तकनीक में प्लास्टिक को गर्म बिटुमेन के साथ मिलाकर पत्थरों पर बिछाया जाता है, जिससे सड़क की मजबूती और उम्र दोनों बढ़ती हैं। प्लास्टिक व बिटुमेन दोनों पेट्रोलियम से बने होते हैं और एक-दूसरे से मजबूती से चिपक जाते हैं। इससे सड़कों में दरार और बारिश से होने वाला नुकसान कम होता है।ग्रामीण विकास मंत्रालय और सड़क परिवहन मंत्रालय ने भी सड़क निर्माण में प्लास्टिक कचरे के इस्तेमाल पर सर्कुलर जारी किया है, लेकिन उत्तराखंड में इस पर अभी तक अमल शुरू नहीं हुआ है।विशेषज्ञों ने सुझाए उपायसड़कों पर अत्यधिक वर्षा संभालने वाली जल निकासी प्रणाली विकसित की जाए।छिद्रित पाइप ड्रेनेज सिस्टम लगाया जाए ताकि सड़क धंसने का खतरा कम हो।एलिवेटेड रोड डिज़ाइन अपनाकर सड़कों को ऊंचा बनाया जाए, जिससे वे जलमग्न न हों।सड़क निर्माण से पहले मिट्टी का ट्रीटमेंट कर कटाव और बहाव रोका जाए।पॉलिमर-संशोधित बिटुमेन या कंक्रीट सामग्री का प्रयोग कर सड़क की मजबूती बढ़ाई जाए।राज्य में हर साल सड़क मरम्मत पर भारी बजट खर्च होने के बावजूद समाधान अधूरा ही है। अब देखना होगा कि विभाग पारंपरिक पैटर्न से हटकर कब इन नए मॉडलों पर काम शुरू करता है ताकि पहाड़ की सड़कों को आपदा से स्थायी राहत मिल सके।

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