नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के मैत्रेयी कॉलेज में आयोजित वार्षिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ‘इक्विनॉक्स 2025’ में देश-विदेश के प्रख्यात विद्वानों, शिक्षकों और छात्रों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका पर गहन चर्चा करते हुए चेताया कि एआई आधारित ट्यूटोरियल और स्वचालित प्रणालियां छात्रों की गहरी सोचने की क्षमता, धैर्य और आत्मनिर्भर सीखने के तरीकों को कमजोर कर रही हैं। सीवीजे सेंटर फॉर सिंथेटिक बायोलॉजी एंड बायोमैन्युफैक्चरिंग के कार्यकारी निदेशक प्रो. पवन धर ने अपने संबोधन में कहा कि किसी भी विषय को समझने की प्रक्रिया समय लेती है और यही समय छात्रों को गहराई व सटीकता प्रदान करता है, लेकिन जब उन्हें एआई से तत्काल उत्तर मिल जाते हैं तो उनका ज्ञान सतही रह जाता है और जटिल समस्याओं को हल करने की स्वाभाविक क्षमता कम हो जाती है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि यदि कोई छात्र स्वयं गणित का प्रश्न हल करता है तो वह पूरी प्रक्रिया को समझता है, जबकि एआई से सीधा उत्तर लेने पर यह समझ अधूरी रहती है। प्रो. धर ने कहा कि शिक्षक न केवल ज्ञान देते हैं बल्कि छात्रों को भावनात्मक सहारा देकर आत्मविश्वास और तनाव प्रबंधन में मदद करते हैं, जबकि एआई केवल समाधान बताता है। उन्होंने ‘मूल्य आधारित एआई’ की तत्काल आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि तकनीक को मानवीय निर्णय, नैतिकता और समावेशिता के अधीन होना चाहिए ताकि शिक्षा केवल सूचना ग्रहण करने का माध्यम न रहकर मूल्य आधारित सीखने और सोचने की प्रक्रिया बनी रहे। सम्मेलन में एआई हथियारों की दौड़, डिजिटल समावेशिता, मशीनीकरण की पारिस्थितिक और कल्पनाशील लागत जैसे गंभीर विषयों पर भी चर्चा हुई और 73 मौखिक व पोस्टर प्रस्तुतियों के साथ आठ तकनीकी सत्र व 16 आमंत्रित व्याख्यान आयोजित किए गए। डॉ. गोपी त्रिपाठी, प्रो. मीना यादव और प्रो. ब्रतोति रॉय ने कार्यक्रम का संचालन किया, जबकि विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति जताई कि शिक्षा व्यवस्था को तकनीकी लाभ और मानवीय मूल्यों के संतुलन के साथ आगे बढ़ाना ही भविष्य की सबसे बड़ी जरूरत है।

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