देहरादून। आस्था, अनुशासन और पवित्रता का प्रतीक छठ महापर्व अब क्षेत्रीय सीमाओं को पार कर राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुका है। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में जिस श्रद्धा और समर्पण के साथ यह पर्व मनाया जाता है, वही भावना अब देश के हर कोने और विदेशों तक फैल चुकी है। छठ पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एकता, समानता, स्वच्छता और निर्मलता का जीवंत प्रतीक है, जिसने इसे भारतीय संस्कृति के सबसे अनुशासित और पर्यावरण-संवेदनशील पर्वों में शामिल कर दिया है।इस वर्ष संभावना जताई जा रही है कि छठ महापर्व को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल किया जा सकता है — जो भारत की लोक परंपराओं और सांस्कृतिक गौरव के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी। छठ में व्रत रखने वाले लोग सूर्य देव और छठी मइया की उपासना के माध्यम से प्रकृति, जल, वायु और प्रकाश के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। इस पर्व की हर परंपरा — चाहे वह स्नान, अर्घ्य, व्रत या स्वच्छ घाटों की तैयारी हो — पर्यावरण के संरक्षण और सामुदायिक एकजुटता का संदेश देती है।विशेषज्ञों का मानना है कि छठ महापर्व वह उदाहरण है जो पूरी दुनिया को भारतीय संस्कृति के बुनियादी सरोकार — प्रकृति के प्रति सम्मान, सामूहिकता और संयमित जीवनशैली — की शिक्षा दे सकता है। जिस तरह पश्चिमी देश वर्ष में एक बार ‘पर्यावरण दिवस’ मनाते हैं, उसी तरह छठ हर वर्ष करोड़ों लोगों के लिए प्राकृतिक संतुलन और मानवता का महापाठ बनकर सामने आता है। यही कारण है कि आज यह पर्व भारत की सीमाओं से निकलकर वैश्विक सांस्कृतिक चेतना का हिस्सा बनता जा रहा है।
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