प्रेस वार्ता के दौरान कांग्रेस प्रदेश महासचिव आनंद रावत जमकर गरजे भाजपा पर

काशीपुर। कांग्रेस के प्रदेश महासचिव आनंद रावत ने गिरीताल रोड स्थित कांग्रेस प्रदेश सचिव शिवम शर्मा के निवास स्थान पर पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा कि वर्ष 2013 में इस प्रदेश में भीषण आपदा आई थी, जिसमें केदार घाटी, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जनपद के अनेक क्षेत्र बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे। उस समय केंद्र और राज्य – दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी। कांग्रेस सरकार ने उस समय आपदा से हुए नुकसान की भरपाई के लिए जो मापदंड तय किए थे, वही मापदंड वर्तमान समय में भी लागू होने चाहिए। चाहे वह धाराली का मामला हो या किसी अन्य स्थान का, आपदा प्रभावित व्यक्ति अपना नुकसान आँककर प्रशासन को देता था और उसी आधार पर उसे मुआवज़ा मिलता था। लेकिन वर्तमान सरकार ने उस मानक को बदल दिया है और केवल 5-5 लाख रुपये देकर पल्ला झाड़ लिया है। हमारी माँग है कि 2013 की आपदा के दौरान जो मुआवज़े का प्रावधान था, वही लागू किया जाए और भविष्य में भी पर्वतीय क्षेत्रों में बादल फटने जैसी घटनाओं से होने वाले नुकसान की स्थिति में वही मानक अपनाया जाए। यह समस्या केवल उत्तराखंड की ही नहीं है, बल्कि हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे अन्य पर्वतीय राज्यों में भी ऐसी ही घटनाएँ लगातार हो रही हैं। इसलिए इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए 2013 के मुआवज़े के प्रावधान को पुनः लागू किया जाना आवश्यक है।श्री रावत ने कहा कि पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी का बयान सामने आया था, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि भाजपा को 27 करोड़ रुपये का चंदा मिला है। कांग्रेस की ओर से लगातार यह माँग उठाई जा रही है कि प्रदेश की जनता को यह जानने का अधिकार है कि यह दानवीर कौन हैं। भाजपा को चाहिए कि वह दानदाताओं की पूरी सूची सार्वजनिक करे। हमें संदेह है कि कहीं यह चंदा देश के दुश्मनों या नशे के कारोबारियों से तो नहीं लिया गया। भाजपा धर्म की आड़ में हमेशा से इस तरह के प्रयास करती रही है। इसलिए हमारी स्पष्ट माँग है कि जनता को यह जानकारी दी जाए कि 27 करोड़ रुपये देने वाले दानदाता कौन हैं। श्री आनंद सिंह रावत ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए यह भी बताया कि कांग्रेस के समय में “जय जवान, जय किसान” का नारा गूंजता था। उस दौरान जवान और किसान योजनाओं के केंद्र बिंदु हुआ करते थे और उनकी ज़रूरतों को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनाई जाती थीं। लेकिन भाजपा की केंद्र और राज्य, दोनों जगह 9 वर्षों की सरकार के बावजूद जवान और किसान इनके एजेंडे से दूर हो चुके हैं।जवानों के लिए ये लोग अग्निवीर योजना लेकर आए, जिसे न तो सैनिक समुदाय ने स्वीकार किया और न ही सेना। यहाँ तक कि पूर्व सैनिक अधिकारी भी इसकी आलोचना कर चुके हैं। किसानों के लिए भाजपा सरकार ने तीन काले कानून थोपने की कोशिश की, लेकिन किसानों के आंदोलन के बाद मजबूर होकर उन्हें वापस लेना पड़ा। इसके बावजूद एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के मुद्दे पर सरकार आज भी चुप है और किसान लगातार एमएसपी लागू करने की माँग को लेकर आंदोलित हैं। सरकार दमनपूर्ण तरीक़े से उनकी आवाज़ दबाने का प्रयास कर रही है, जिसे कांग्रेस विपक्ष होने के नाते बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करेगी और कांग्रेस पूरी तरह किसानों के साथ खड़ी है।इसी प्रकार स्मार्ट मीटर का मुद्दा भी जनता के विरोध का कारण बना हुआ है। यह निजीकरण की ओर बढ़ता कदम है और जागरूक जनता समझ रही है कि यदि बिजली पूरी तरह निजी हाथों में चली गई तो मनमानी होगी। इसलिए जनता इसका विरोध कर रही है और कांग्रेस भी सड़क से लेकर सदन तक स्मार्ट मीटर के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर रही है। लेकिन सरकार तानाशाही तरीक़े से स्मार्ट मीटर थोप रही है। कई जगह मीटर तोड़ने की घटनाएँ सामने आ रही हैं और जिन घरों में मीटर लग चुके हैं, वहाँ अत्यधिक बिल आ रहे हैं – कहीं एक-एक या दो-दो लाख रुपये का मासिक बिल तक आ रहा है। ये घटनाएँ सोशल मीडिया के माध्यम से भी सामने आ रही हैं। अतः सरकार को स्मार्ट मीटर का निर्णय वापस लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त पिछले 25 वर्षों से लगातार हो रहा पलायन भी अत्यंत चिंतनीय विषय है। पर्वतीय क्षेत्रों में मौसम का असंतुलन, बादल फटना और आपदाएँ लोगों के मन में भय पैदा कर रही हैं। ऐसे में सरकारों को दीर्घकालीन रणनीति बनानी चाहिए। पलायन रोकने के लिए रोज़गार के अवसर और पर्यटन आधारित योजनाएँ तैयार करनी होंगी। हिमालयी क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देकर पलायन की समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है। उन्होंने 2027 के चुनाव में भाजपा का पूर्ण तरीके से सुपड़ा साफ होने की बात कही है उन्होंने कहा कि इस बार कांग्रेस पार्टी पूर्ण बहुमत से केंद्र और राज्यों में अपनी सरकार बनाएगी।

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