महिला सुरक्षा पर जारी निजी सर्वे रिपोर्ट का देहरादून पुलिस ने किया खंडन, एनसीआरबी व पुलिस डेटा के आधार पर शहर को बताया सुरक्षित

देहरादून। हाल ही में एक निजी डेटा साइंस कम्पनी पी वैल्यू एनालिटिक्स द्वारा जारी की गई “NARI–2025” शीर्षक वाली सर्वे रिपोर्ट, जिसमें देहरादून को देश के 10 असुरक्षित शहरों में शामिल बताया गया है, को लेकर अब विवाद गहरा गया है। देहरादून पुलिस ने इस सर्वे रिपोर्ट का खंडन करते हुए इसे तथ्यों पर आधारित न मानते हुए निराधार बताया है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय सिंह ने पत्रकार वार्ता कर स्पष्ट किया कि उक्त रिपोर्ट किसी भी सरकारी अथवा अधिकृत संस्था द्वारा नहीं कराई गई, बल्कि यह एक निजी कम्पनी की स्वतंत्र पहल है, जो अपराध के वास्तविक आँकड़ों के बजाय धारणाओं और सीमित सैम्पल सर्वे पर आधारित है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस रिपोर्ट से स्वयं को पूरी तरह अलग बताया है और स्पष्ट किया है कि यह अध्ययन उनके अथवा राज्य महिला आयोग के स्तर से नहीं कराया गया।पुलिस द्वारा प्रस्तुत तथ्यों के अनुसार, सर्वेक्षण केवल 12770 महिलाओं की टेलीफोनिक वार्ता पर आधारित है, जबकि देहरादून की महिला आबादी लगभग 9 लाख है। यहां मात्र 400 महिलाओं के सैम्पल पर आधारित निष्कर्षों को पूरे शहर की वास्तविक स्थिति का प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता। रिपोर्ट में बताया गया है कि केवल 4 प्रतिशत महिलाएं एप अथवा तकनीकी सुविधाओं का प्रयोग करती हैं, जबकि उत्तराखण्ड पुलिस द्वारा विकसित “गौरा शक्ति मॉड्यूल” में केवल देहरादून जनपद की ही 16,649 महिलाओं का पंजीकरण हुआ है और प्रदेशभर में 1.25 लाख से अधिक पंजीकरण दर्ज हैं। इसके अलावा महिलाएं नियमित रूप से डायल 112, पुलिस एप, सीएम हेल्पलाइन और सिटीजन पोर्टल जैसी सेवाओं का भी उपयोग कर रही हैं।सर्वे रिपोर्ट में पुलिस पैट्रोलिंग और क्राइम रेट को आधार बनाया गया है, किंतु आंकड़े इसके विपरीत तस्वीर पेश करते हैं। उदाहरण के लिए, सर्वे के अनुसार सबसे सुरक्षित बताए गए शहर कोहिमा का स्कोर 11 प्रतिशत है, जबकि देहरादून का स्कोर 33 प्रतिशत है। इसी तरह, सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न में देश का औसत स्कोर 7 प्रतिशत है, जबकि देहरादून का केवल 6 प्रतिशत है। अगस्त माह में डायल 112 पर कुल 12,354 शिकायतें दर्ज हुईं, जिनमें से केवल 2287 महिलाओं से संबंधित थीं और इनमें से भी अधिकतर घरेलू विवाद से जुड़ी थीं। छेड़छाड़ जैसे मामलों की संख्या मात्र 11 थी, जो कुल शिकायतों का 1 प्रतिशत से भी कम है। इन शिकायतों पर पुलिस का औसत रिस्पॉन्स टाइम 13.33 मिनट दर्ज किया गया है, जो पुलिस की तत्परता और संवेदनशीलता को दर्शाता है।देहरादून में वर्तमान में लगभग 70 हजार बाहरी छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर रहे हैं, जिनमें 43 प्रतिशत छात्राएं हैं। इनके साथ ही बड़ी संख्या में विदेशी छात्र भी यहां अध्ययनरत हैं, जो सुरक्षित वातावरण में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। महिला सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने के लिए हर थाने में हेल्प डेस्क, वन स्टॉप सेंटर, 13 गौरा चीता गाड़ियां, पिंक बूथ, सीसीटीवी निगरानी तंत्र और महिलाओं के लिए आत्मरक्षा शिविर जैसी सुविधाएं संचालित हैं। शहरभर में लगभग 14 हजार सीसीटीवी कैमरे कार्यशील हैं, जिनकी गूगल मैपिंग की जा चुकी है और इनका कंट्रोल सीधे पुलिस थानों से जुड़ा हुआ है।एनसीआरबी डेटा और पुलिस रिकॉर्ड साफ बताते हैं कि देहरादून का अपराध दर महानगरों से काफी कम है और यहां महिलाओं के लिए माहौल अपेक्षाकृत सुरक्षित है। यही कारण है कि यहां न केवल देश-विदेश के छात्र-छात्राएं पढ़ाई करने आते हैं, बल्कि सालभर बड़ी संख्या में पर्यटक भी यहां का रुख करते हैं। पुलिस का कहना है कि मुंबई जैसे शहरों में नाइट लाइफ सुरक्षा के आकलन का पैमाना हो सकता है, परन्तु देहरादून जैसे शांत शहर में वही पैमाना लागू करना उचित नहीं है। ऐसे में मात्र 0.04 प्रतिशत महिला आबादी की राय के आधार पर पूरे शहर की सुरक्षा स्थिति पर प्रश्नचिह्न लगाना किसी भी दृष्टि से तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता।एसएसपी अजय सिंह ने कहा कि देहरादून हमेशा सुरक्षित शहरों में गिना जाता रहा है और यहां स्थापित प्रतिष्ठित केंद्रीय व शैक्षणिक संस्थान, विदेशी छात्र-छात्राओं की मौजूदगी तथा लगातार बढ़ता पर्यटन स्वयं इस बात का प्रमाण है। उन्होंने स्पष्ट किया कि, “हम सर्वेक्षण के निष्कर्षों का सम्मान करते हैं, किंतु नीतिगत निर्णयों के लिए किसी भी सर्वे की पद्धति वैज्ञानिक और तथ्यात्मक होनी चाहिए, ताकि निष्कर्ष सार्थक और विश्वसनीय बन सकें।”

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