देहरादून में आदि गौरव महोत्सव; भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर सीएम धामी ने जनजातीय गौरव दिवस मनाया, कहा—यह उत्सव है विरासत, वीरता और संस्कृति कापूरी, विस्तृत न्यूज़ (लंबी और गहराई वाली):देहरादून के रेंजर ग्राउंड में शनिवार को आयोजित आदि गौरव महोत्सव जनजातीय संस्कृति और परंपराओं की भव्यता से भर गया, जहां मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिभाग करते हुए भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर सभी को जनजातीय गौरव दिवस की शुभकामनाएं दीं। मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम की शुरुआत भगवान बिरसा मुंडा को कोटि-कोटि नमन करते हुए की और कहा कि यह दिवस न सिर्फ इतिहास के महान नायकों को स्मरण करने का अवसर है, बल्कि देश की जनजातीय परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत को सम्मान देने का भी प्रतीक है।मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि आदि गौरव महोत्सव केवल सांस्कृतिक आयोजन भर नहीं, बल्कि जनजातीय समाज की गौरवशाली परंपराओं, उनकी अनोखी जीवनशैली, अदम्य वीरता, आध्यात्मिक आस्था और समृद्ध संस्कृति का उत्सव है। ऐसे आयोजनों से जहां जनजातीय कलाकारों को अपनी कला और प्रतिभा प्रदर्शित करने का सशक्त मंच मिलता है, वहीं समाज के अन्य वर्गों को जनजातीय समुदाय की वास्तविक सांस्कृतिक विरासत से रूबरू होने का अवसर मिलता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की विविधता ही उसकी शक्ति है और जनजातीय समाज इस विविधता को मजबूत आधार प्रदान करता है।भगवान बिरसा मुंडा के योगदान पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ने उन्हें संघर्ष, स्वाभिमान और संगठित शक्ति का प्रतीक बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि बिरसा मुंडा की प्रेरणा आज भी देश को यह संदेश देती है कि जब तक समाज के सबसे कमजोर वर्ग को मजबूत नहीं किया जाता, तब तक राष्ट्र की मजबूती अधूरी रहती है।सीएम धामी ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार जनजातीय समाज के सम्मान और सशक्तिकरण के लिए लगातार ऐतिहासिक कदम उठा रही है। जनजातीय बजट को तीन गुना तक बढ़ाना, उनके उत्थान और विकास के प्रति सरकार की संवेदनशीलता का स्पष्ट प्रमाण है। केंद्र और राज्य सरकार दोनों का लक्ष्य है कि जनजातीय समाज की संस्कृति संरक्षित रहे और उनके विकास को मुख्यधारा में सर्वोच्च प्राथमिकता मिले।रेंजर ग्राउंड में आयोजित इस महोत्सव में पारंपरिक नृत्य, जनजातीय परिधान, लोकगीत, कला प्रदर्शन और सांस्कृतिक झांकियों ने उपस्थित दर्शकों का मन मोह लिया। कार्यक्रम के दौरान जनजातीय कलाकारों ने अपनी समृद्ध विरासत के रंग बिखेरकर माहौल को जीवंत कर दिया, जिससे आदि गौरव महोत्सव एक यादगार सांस्कृतिक उत्सव में बदल गया।
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