काशीपुर। काशीपुर को सुंदर बनाने का सपना संजोकर राजनीति में आए महापौर दीपक बाली, इन दिनों मानसिक सदमे में हैं। सूत्रों की मानें तो पूर्व विधायक हरभजन सिंह चीमा द्वारा की गई बयान बाजी से आहत होकर वह महापौर पद से इस्तीफा देने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो काशीपुर के विकास पर ही नहीं बल्कि उसके अस्तित्व पर भी संकट खड़ा हो जाएगा और दशकों बाद काशीपुर की जनता में जगी विकास की उम्मीदें धरी की धरी रह जाएगी।दीपक बाली न केवल अपने विकासोन्मुखी कार्यों के लिए बल्कि शालीन और विनम्र व्यवहार के लिए भी नगरवासियों के बीच एक विशेष पहचान रखते हैं। उनके राजनीतिक विरोधी भी उनके व्यक्तित्व की गरिमा और व्यवहार की मधुरता को स्वीकारते हैं।चुनावों के बाद अनेक मंचों से उन्होंने बार-बार स्पष्ट किया कि “चुनाव तो व्यवस्था का हिस्सा है, लेकिन काशीपुर मेरा परिवार है। जो साथ थे, वे भी मेरे अपने हैं और जो सामने थे, वे भी मेरे हैं।”इसी भावना के तहत उन्होंने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को भी कभी शत्रु नहीं माना। चाहे वह अपनी ही पार्टी के हों या विरोधी पार्टियों के। दीपक बाली ने सदैव सम्मान और सौजन्य की राजनीति को प्राथमिकता दी।शपथ ग्रहण समारोह से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री के हर बार के आगमन तक, हर मंच पर दीपक बाली ने पूर्व विधायक को ससम्मान आमंत्रित किया और पिता तुल्य व्यवहार देकर मंच पर आसन दिया। यहां तक कि महापौर बनने से पहले भी वे दीपोत्सव जैसे आयोजनों में सक्रिय भूमिका निभाते रहे और सभी को साथ लेकर चलने की मिसाल पेश की तथा दीपोत्सव कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के आगमन पर पूर्व विधायक सहित सभी पार्टी जनों को यथायोग्य स्थान प्रदान किया।उनकी यही समावेशी सोच है जो उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय नेता बनाती है। दलगत भावना जाति और धर्म की सोच से ऊपर उठकर अपने कार्यालय में सभी को सम्मान देकर लोगों की समस्याओं को तुरंत सुनते हैं और हाथों-हाथ संबंधित अधिकारियों से बात कर समस्या का समाधान करते हैं। यही कारण है कि उनका कार्यालय मेयर कार्यालय कम जनता दरबार अधिक नजर आता है। उनसे मिलने वाला व्यक्ति सिर्फ राजनीतिक संबंध नहीं, बल्कि मानवीय जुड़ाव लेकर लौटता है। इस सबके बावजूद अब सवाल उठता है कि क्या राजनीति में सौम्यता की कीमत चुकानी पड़ती है? क्या एक ऐसे जनप्रतिनिधि को, जो जनसेवा और विकास को ही अपनी ताकत और कर्तव्य समझता है, उसे राजनीतिक आरोपों के बीच इस्तीफा देने की बात सोचने पर मजबूर कर दिया जाए? सवाल दीपक बाली का नहीं बल्कि उस काशीपुर का है जो वर्षों से विकास की बाट जोह रहा था। जननायक बनेउस महापौर का है जिसने काशीपुर की निराश और उदास जनता की आंखों में दिन-रात विकास कार्य शुरूकर उम्मीदो के सपने सजोए। जनता को लगने लगा कि अब काशीपुर के विकास का जो वनवास काल था वह समाप्त हो जाएगा और चमचमाता सुंदर तथा काशी की तरह भव्य बना काशीपुर नजर आएगा।काशीपुर के विकास के प्रति दीपक बाली के प्रयासों के चलते शहर में घुसने से पहले ही लोगों को एहसास हो जाएगा कि अब काशीपुर आ गया है। सुंदर चौराहे और आकर्षक लाइटे हर किसी का मनमोह लेंगी। जीजीआईसी का नजारा बदलेगा और बाजारों की सूरत भी । काशीपुर गड्ढा मुक्त होगा और गिरीताल शहर वासियों को ही नहीं बाहरी पर्यटकों को भी आकर्षित करेगा। व्यापारियों सहित किसी का भी शोषण नहीं होगा और शहर की सारी व्यवस्था चाकचौबंद रहेगी, लेकिन लगता है काशीपुर के दुर्भाग्य की छाया अभी भी उसके ऊपर मंडरा रही है। काशीपुर के विकास को लेकर यहां की जनता के समक्ष अनेक यक्ष प्रश्न उठ खड़े होने जा रहे हैं, जिनका उत्तर भी काशीपुर की जनता को ही तलाशना होगा और सोचना होगा। सोचना होगा कि जब जनता के चार आदमी जनता नहीं हो सकते तो फिर चार आदमी पूरा संगठन कैसे हो सकते हैं? जैसा कि सूत्रों से पता चल रहा है कि महापौर दीपक बाली पूर्व विधायक द्वारा लगाए गए आरोपों से आहत हो इस्तीफा देने जा रहे हैं तो निसंदेह काशीपुर का विकास फिर अधर में लटक जाएगा। सैकड़ो करोड़ की विकास योजनाओं को लाने में दीपक बाली द्वारा किए गए प्रयासों पर पलीता लग जाएगा। समस्याओं से ग्रस्त आम आदमी अपनी पीडा का समाधान कराने किसके पास जाएगा? गरीब विधवा मां अपने बच्चों की फीस माफ कराने के लिए किसके सामने गुहार लगाएगी? फोन करते ही जिन लोगों के तुरंत काम हो जाते हैं वह अपनी पीड़ा किसे बताएंगे। अपने ही चुने हुए जनप्रतिनिधियों से निराश होकर महापौर के कार्यालय में गुहार लगाने वाले किसे अपना दुख दर्द बताएंगे? इन सवालों का दर्द आज नहीं मगर कल उस समय जरूर होगा जब काशीपुर को चमकाने के लिए राजनीति में आए दीपक बाली महापौर पद से इस्तीफा देकर राजनीति छोड़ घर बैठ जाएंगे। देखना यह है कि जननायक बने अपने महापौर के इस्तीफे को काशीपुर की जनता स्वीकारती है या नहीं।

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